घग्गर तो सिर्फ अपना रास्ता मांग रही!

शंकर सोनी. 
प्रकृति से छेड़छाड़ का सबसे बड़ा दुष्परिणाम प्राकृतिक नदियों में बाढ़ का आना हैं। दुनिया का लगभग तीसरा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है जिससे विश्व की लगभग 82 प्रतिशत जनसंख्या प्रभावित है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित देश है। भारत का लगभग 12 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वार्षिक बाढ़ के लिए अतिसंवेदनशील है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 12 हज़ार छोटी नदियां के अस्तित्व को हम लगभग मिटा चुके है। हिमालय की गोद से निकलने वाली 6000 नदियों में से आज 400 से 600 का ही अस्तित्व बचा है। आज घग्गर का मिजाज़ देखकर हमारी सांसे रुकी हुई है। घग्गर अपना रास्ता मांग रही है। हमारी यादाश्त में हनुमानगढ़ क्षेत्र में सन 1964 के बाद 1993 में बाढ़ का खतरा मंडराया फिर 1995 में हनुमानगढ़ जंक्शन जलमग्न हुआ था। प्रारंभ में राजस्थान में घग्गर का बहाव क्षेत्र चौड़ाई में आज से 7 गुणा अधिक लगभग 40 बीघा था। जो समस्त भूमि लगभग सरकारी थी। हनुमानगढ़ में घग्गर बाढ़ से बचाव हेतु अलग से घग्गर डिवीजन बना हुआ था इसका मुख्यालय सूरतगढ़ में था। घग्गर डिवीजन अब कागजों में रह गया है। गत वर्षाे के जल प्रवाह के आंकड़ों के आधार पर सिंचाई विभाग की धारणा थी कि घग्गर में 50 वर्ष में एक बार 50,000 क्यूसिक पानी आता है। अपनी धारणा के आधार पर ही सुरक्षा बंधों का रख रखाव होता रहा। सबसे पहले गलती सरकार ने घग्गर बहाव क्षेत्र की भूमि को विक्रय व आवंटित करके की। हालांकि राजस्थान राज्य सरकार ने अपनी अधिसूचना संख्या एफ. 28(2) आईआरआरजी/73, दिनांक 6 जून 1973 के द्वारा घग्गर नदी तल में चक 18 सीडीआर पत्थर लाइन 198/272 लेकर चक 94 जीबी से आगे भारत पाक सीमा तक घग्गर के बहाव क्षेत्र में जल प्रवाह में किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न करने वाले अवरोध पर रोक लगाई थी और यह भी आदेश पारित किए थे कि घग्गर के उक्त बहाव क्षेत्र में यदि कोई हो तो उन्हे हटाया जाए। फिर भी लोगों ने घग्गर के बहाव क्षेत्र में बंधे बना कर इसके बहाव को अवरूद्ध किया। स्वयं राज्य सरकार की अनुमति से घग्गर बहाव क्षेत्र में अवैध कॉलोनियां बसाई गई, निर्माण हुआ और अवैध ईंट भट्ठे लगे। आज हालत यह है कि घग्गर का विस्तृत बहाव क्षेत्र कहीं कहीं मात्र एक बीघा से तीन रह गया। मामला सर्वाेच्च न्यायालय तक भी गया और सर्वाेच्च न्यायालय ने घग्गर के बहाव क्षेत्र के लिए 6 बीघा चौड़ाई को न्यायोचित ठहरा दिया। अब जब घग्गर अपना रास्ता मांग रही है तो इसका जबाव कौन देगा ? सरकार, सर्वाेच्च न्यायालय या फिर अतिक्रमणकारी ? नहीं, इसका जबाव तो घग्गर खुद देगी। कहावत है नदी कई वर्षाे बाद भी अपना पुराना रास्ता ढूंढ लेती है। घग्घर जैसी नदियों को समझना है तो कवि बालकृष्ण राव की कविता सुन लीजिए। बकौल कवि..... 
‘नदी को रास्ता किसने दिखाया ?
सिखाया था उसे किसने कि अपनी भावना के वेग को उन्मुक्त बहने दे ? 
कि वह अपने लिए
 खुद खोज लेगी सिन्धु की गम्भीरता
 स्वच्छन्द बहकर ?
 इसे हम पूछते आए युगों से, 
और सुनते भी युगों से आ रहे उत्तर नदी का।
 मुझे कोई कभी आया नहीं था राह दिखलाने, 
बनाया मार्ग मैने आप ही अपना। 
ढकेला था शिलाओं को, गिरी निर्भिकता से मैं 
कई ऊँचे प्रपातों से, वनों में, कंदराओं में, 
भटकती, भूलती मैं फूलती उत्साह से प्रत्येक बाधा-विघ्न को 
ठोकर लगाकर, ठेलकर, बढती गई आगे निरन्तर
 एक तट को दूसरे से दूरतर करती। 
बढ़ी सम्पन्नता के और अपने दूर-दूर तक फैले साम्राज्य के अनुरूप
 गति को मन्द कर... पहुँची जहाँ सागर खडा था फेन की माला लिए मेरी प्रतीक्षा में। 
यही इतिवृत्त मेरा ... मार्ग मैने आप ही बनाया। 
मगर भूमि का है दावा, कि उसने ही बनाया था नदी का मार्ग , 
उसने ही चलाया था नदी को फिर जहाँ, जैसे,
 जिधर चाहा, शिलाएँ सामने कर दी जहाँ वह चाहती थी रास्ता बदले नदी, 
जरा बाएँ मुड़े या दाहिने होकर निकल जाए, 
स्वयं नीची हुई गति में नदी के वेग लाने के लिए बनी समतल 
जहाँ चाहा कि उसकी चाल धीमी हो। 
बनाती राह, गति को तीव्र अथवा मन्द करती
 जंगलों में और नगरों में नचाती ले गई भोली नदी को 
भूमि सागर तक किधर है सत्य?
 मन के वेग ने परिवेश को 
अपनी सबलता से झुकाकर रास्ता अपना निकाला था, कि मन के वेग को बहना पडा था बेबस 
जिधर परिवेश ने झुककर स्वयं ही राह दे दी थी? किधर है सत्य? 
क्या आप इसका जबाब देंगे?’
 बहरहाल, घग्घर उफान पर है। लोग डरे हुए हैं। प्रशासन की सांसें फूल रहीं। सरकार सकते में। फिर भी, अभी समय है कि व्यवहारिक योजना बना कर इसका समाधान किया जाए अन्यथा ......!
 -लेखक जाने-माने अधिवक्ता व नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं

Post a Comment

0 Comments