वेश्या के आंगन की मिट्टी से बन रही मां दुर्गा की मूर्ति

भटनेर पोस्ट डॉट कॉम. 
हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय स्थित हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में तीन दशक यानी 30 साल से दुर्गा पूजा महोत्सव श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस बार भी 20 से 24 अक्टूबर तक पांच दिवसीय दुर्गा पूजा महोत्सव की तैयारी चल रही है। इसमें बंगाल की संस्कृति की पूरी झलक दिखाई देती है। खास बात है कि बंगाली कलाकार ही महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश और कार्तिक आदि की मूर्तियां तैयार करते हैं। मूर्तिकार दीपांकर विश्वास व प्रेम मंडल मूर्तियों को आकार देने में जुटे हुए हैं। सार्वजनिक श्रीश्री दुर्गा पूजा कमेटी अध्यक्ष अजीत मंडल बताते हैं कि करीब 15 से 20 दिन में मूर्तियां तैयार होती हैं। मूर्तियां बनाने के लिए बांस, मिट्टी और पराली का इस्तेमाल होता है। शक्ति की देवी मां दुर्गा की मूर्ति बनाने में नौ तरह की मिट्टी का उपयोग होता है। अजीत मंडल के मुताबिक, इसमें गंगा प्रवाह क्षेत्र व गजदंत से लेकर वेश्या के आंगन की मिट्टी तक शामिल है। अजीत मंडल इन मिट्टियों की व्यवस्था बंगाल से ही करवाते हैं। आखिर दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्या के आंगन की मिट्टी के उपयोग का क्या महत्व है ? अजीत मंडल कहते हैं कि इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं। इनका सार यह है कि जब कोई व्यक्ति वेश्यालय जाता है तब वह अपने पुण्य कर्म और पवित्रता को उसके द्वार पर ही छोड़कर भीतर जाता है। इसलिए उनके आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है। इससे संदेश मिलता है कि परस्त्री गमन महापाप की श्रेणी में आता है।

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